वास्ते हज़रत मुराद-ए- नेक नाम       इशक़ अपना दे मुझे रब्बुल इनाम      अपनी उलफ़त से अता कर सोज़ -ओ- साज़    अपने इरफ़ां के सिखा राज़ -ओ- नयाज़    फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हर घड़ी दरकार है फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हो तो बेड़ा पार है

 

 

हज़रत  मुहम्मद मुराद अली ख़ां रहमता अल्लाह अलैहि 

 

 हज़रत इमाम रब्बानी मुजद्दिद अलफ़ सानी

हज़रत-ए-शैख़ अहमद सरहिंदी

रहमतुह अल्लाह अलैहि

हज़रत-ए-शैख़ अबदालाहद रहमतुह अल्लाह अलैहि जो अपने ज़माने के बहुत बड़े कामिल वली थे उन्हों ने रात को ख़ाब देखा कि तमाम जहान में ज़ुल्मत फैल गई है। स्वर, बंदर और रीछ लोगों को हलाक कररहे हैं। इसी अस्ना में मेरे सीने से एक नूर निकला और इस में एक तख़्त ज़ाहिर हुआ। इस तख़्त पर एक शख़्स तकिया लगाए बैठा है और इस के सामने तमाम ज़ालिमों, ज़िन्दीक़ों और मुल्हिदों को बकरे की तरह ज़बह कररहे हैं और कोई शख़्स बुलंद आवाज़ में कह रहा है

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

وَقُلْ جَاۗءَ الْحَقُّ وَزَهَقَ الْبَاطِلُ ۭ اِنَّ الْبَاطِلَ كَانَ زَهُوْقًا

और फ़र्मा दीजिए हक़ आगया और बातिल मिट गया, बेशक बातिल मिटने वाला है।

इस के बाद आप की आँख खुल गई और फिर आप हज़रत-ए-शैख़ शाह कमाल कैथली रहमतुह अल्लाह अलैहि की ख़िदमत में हाज़िर होएआवर अपना ख़ाब बयान किया और आप से ताबीर पूछी । आप ने फ़रमाया तुम्हारे हाँ एक लड़का पैदा होगा जिस से इलहाद-ओ-बिद्दत की तारीकी दूर होगी। और वक़्त ने साबित किया कि ये ताबीर हर्फ़ बह हर्फ़ दरुस्त साबित हुई और सिर्फ़ आप के लख़त-ए-जिगर नूर नज़र हज़रत मख़दूम शेख़ अहमद सरहिंदी मुजद्दिद अलफ़सानी रहमतुह अल्लाह अलैहि ने इलहाद-ओ-बिद्दत और शिर्क-ओ-कुफ्र को ख़त्म किया। आप की विलादत बासआदत शहर सरहिंद की पाक सरज़मीन पर शब जमाउल-मुबारक 14 शवाल 971ह बमुताबिक़ 1564-ए-को हुई। आप का सिलसिला-ए-नसब 32 बतीसवीं पुश्त पर जाकर सय्यदना हज़रत उम्र फ़ारूक़ रज़ी अल्लाह अन्ना से मिल जाता है। इस का इज़हार आप ने अपने मकतूब शरीफ़ में फ़रमाया है। आप का नाम मुबारक अहमद रखा गया। आप दसवीं सदी के वाहिद बुज़ुर्ग हैं कि जिन के इशारे अहादीस नबवीह में भी मिलते हैं।

हज़रत मुजद्दिद अलफ़सानी रहमतुह अल्लाह अलैहि बचपन में निहायत सुर्ख़-ओ-सफ़ैद थे। एक मर्तबा बीमार होगए और बीमारी इस क़दर बढ़ी कि आप ने माँ का दूध पीना छोड़ दिया और लंबे लंबे सांस लेने लगे। सब घर वाले आप की ज़िंदगी से मायूस होकर मग़्मूम और परेशान होगए। लेकिन ख़ुदावंद क़ुद्दूस ने तो आप से एक अज़ीम काम लेना था। अभी तो इस सूरज को निस्फ़ अलनहार पर चमकना था। इस लिए हज़रत ख़्वाजा शाह कमाल कैथली रहमतुह अल्लाह अलैहि आप के घर तशरीफ़ लाए, घर वालों ने आप की आमद को रहमत ख़ुदावंदी का बाइस जाना और हज़रत को उठाकर उसी हालत में आप की गोद में डाल दिया। हज़रत शाह साहिब ने अपनी ज़बान फ़ैज़ तर्जुमान बच्चे के मुँह में दीदी। आप ने इसी अच्छी तरह चूसना शुरू कर दिया। इस के बाद हज़रत शाह कमाल कैथली अलैहि अलरहमने फ़रमाया कि मुतमइन रहो, इस बच्चे की उम्र बड़ी होगी, अल्लाह ताला इस से बहुत काम लेना चाहता है। में आज उस को अपना बेटा बनाता हूँ। ये मेरी तरह ही होगा। इसी अस्ना में आप को मुकम्मल सेहतयाबी हासिल होगई।

अक्सर सवानिह निगारों ने लिखा है कि हज़रत मुजद्दिद ने अवाइल उम्र ही में क़ुरान-ए-पाक हिफ़्ज़ करलिया। लेकिन आप के एक मकतूब से अंदाज़ा होता है कि ये दौलत क़िला गवालयार में ऩजरबंदी के ज़माने में हासिल हुई। इस के बाद अपने वालिद माजिद शेख़ उल-इस्लाम हज़रत-ए-शैख़ अबदालाहद के मकतब से आप ने उस वक़्त के मुरव्वजा उलूम-ओ-फ़नून की तहसील शुरू करदी और मुख़्तलिफ़ उलूम-ओ-फ़नून की किताबें पढ़ें। मज़ीद तदरीस के लिए आप स्यालकोट तशरीफ़ ले गए। वहां आप ने हज़रत अल्लामा मौलाना कमाल कश्मीरी अलैहि अलरहमसे माक़ूलात और संदली, क़ाज़ी बुहलूल बदखशी अलैहि अलरहमसे मुख़्तलिफ़ तफ़ासीर और अहादीस शरीफा का दरस लिया।

तहसील इलम से फ़ारिग़ होने के बाद हज़रत मुजद्दिद आगरे तशरीफ़ ले गए और वहां दरस-ओ-तदरीस का सिलसिला शुरू किया। आप के हलक़ा दरस में फ़ज़लाए वक़्त शरीक होते थे। ये सिलसिला काफ़ी अर्सा तक चला। आप के वालिद माजिद मख़दूम हज़रत-ए-शैख़ अबदालाहद रहमतुह अल्लाह अलैहि आप से बड़ी मुहब्बत रखते थे, वो आप के फ़िराक़ में बेचैन होगए और बावजूद ज़ोफ़-ओ-किबरसिनी सरहिंद शरीफ़ से आगरे आगए और हज़रत मुजद्दिद को अपने साथ ही सरहिंद शरीफ़ ले गए। सरहिंद शरीफ़ जाते हुए रास्ते में जब थानेसर पहुंचे तो वहां के रईस शेख़ सुलतान की लड़की से हज़रत मुजद्दिद का अक़द मसनोना होगया।

हज़रत मुजद्दिद ने ज़ाहिरी उलूम के साथ साथ बातिनी उलूम यानी मार्फ़त अलाहीह के लिए भी सुई फ़रमाई और मुतअद्दिद शयूख़ से मुख़्तलिफ़ सलासिल तरीक़त में इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त हासिल फ़रमाई। सिलसिला-ए-चिश्तिया और सिलसिला सुहरवर्दिया में अपने वालिद माजिद हज़रत-ए-शैख़ अबदालाहद रहमतुह अल्लाह अलैहि से इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त हासिल फ़रमाई। सिलसिला-ए-क़ादरिया में हज़रत शाह सिकन्दर रहमतुह अल्लाह अलैहि से इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त हासिल फ़रमाई और सिलसिला-ए-नक़्शबंदिया में ख़्वाजा-ए-ख़वाजगान हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुह अल्लाह अलैहि से इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त हासिल फ़रमाई।

आप को हज बैतुल्लाह शरीफ़ और ज़यारत रोज़ा-ए-अक़्दस रसूल-ए-अकरम सिल्ली अल्लाह अलैहि वसल्लम का शौक़ मुद्दत से दामनगीर था। लेकिन वालिद माजिद की किबरसिनी के बाइस इस इरादे को मुल्तवी रखा। लेकिन जब 27 जमादी अलाख़र 1007ह बमुताबिक़ 1598-ए-में इसी साल की उम्र मुबारक में वालिद माजिद वासिल बहक हुए तो इस के दूसरे साल आप ने क़स्द-ए-हज फ़रमाया और सरहिंद शरीफ़ से रवाना हुए। जब दिल्ली पहुंचे तो मौलाना हुस्न कश्मीरी ने जो आप के दोस्तों में से थे हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुह अल्लाह अलैहि की बहुत तारीफ़-ओ-तौसीफ फ़रमाई तो आप के दिल में इश्तियाक़ पैदा हुआ और हज़रत ख़्वाजा-ए-ख़वाजगान मुहम्मद बाक़ी बिल्लाह रहमतुह अल्लाह अलैहि की ख़िदमत में हाज़िर हुए। ख़्वाजा साहिब की तबीयत मुबारक बड़ी ग़यूर थी। वो ख़ुद किसी को अपनी तरफ़ मुतवज्जा नहीं फ़रमाते थे। लेकिन यहां मुआमला बरअक्स था। क्योंकि तालिब ख़ुद मतलूब और मुरीद ख़ुद मुराद था। यानी हज़रत ख़्वाजा साहिब ने इस्तिख़ारा में जिस तूती को देखा था और उस की वजह से आप ने हिंदूस्तान का सफ़र फ़रमाया था, उस वक़्त हज़रत मुजद्दिद साहिब की सूरत में आप के सामने मौजूद था। इसी लिए हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह अलैहि अलरहमका क़ौल है कि हम ने पीरी मुरीदी नहीं की बल्कि हम तो खेल करते रहे। लेकिन अल्लाह ताला का बड़ा करम-ओ-एहसान है कि हमारे खेल और दुकानदारी में घाटा नहीं रहा, हम को शेख़ अहमद जैसा साहिब इस्तिदाद शख़्स मिल गया। यही वजह है कि ख़ुद मुर्शिद बरहक़ ने बढ़ कर मुरीद-ओ-मुराद सादिक़ से फ़रमाया कि आप कुछ अर्सा हमारे पास क़ियाम फ़रमाएं। हज़रत मुजद्दिद बखु़शी रज़ामंद होगए। मुजद्दिद साहिब की आला फ़ित्री इस्तिदाद और क़वी अलनसबत मुर्शिद की ख़ुसूसी तवज्जा से वो रुहानी अहवाल-ओ-मुक़ामात जो बरसों के मुजाहिदे से हासिल होते हैं दिनों में हासिल होगए। रुहानी मनाज़िल में आप की इस इस्तिदाद को देख कर मुर्शिद-ए-रोशन ज़मीर को यक़ीन होगया कि यही वो तोतई ख़ोशनवा है कि जिस की खू शनवाई से हिंदूस्तान किया बल्कि पूरे आलिम इस्लाम के चमनिस्तान में ताज़ा बिहार आएगी।

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुह अल्लाह अलैहि ने तमाम रुहानी निसबतें और बशारतें हज़रत मुजद्दिद साहिब को तफ़वीज़ फ़र्मा दें और अपने हलक़े से मुताल्लिक़ तालबीन को हिदायत की कि वो अब मेरी बजाय मुजद्दिद साहिब की तरफ़ रुजू करें और आप को सज्जादगी-ओ-इरशाद-ओ-तर्बीयत की इजाज़त अता फ़रमाई। दसवीं सदी हिज्री के इख़तताम का हिंदूस्तान बड़ी तेज़ी से एक हमा पहलू दीनी, तहज़ीबी और ज़हनी इर्तिदाद की तरफ़ बढ़ रहा था और इस शैतानी तहरीक की पुश्त पर अपने दौर की मज़बूत तरीन सलतनत और फ़ौजी ताक़त के साथ अपने वक़्त के मुतअद्दिद ज़हन अफ़राद की इलमी और ज़हनी कुमक भी मौजूद थी। इन हालात में अगर कोई ज़हीन, रुहानी और इलमी मैदान में ताक़तवर शख़्सियत रास्ता रोकने के लिए खड़ी ना होती तो इस्लाम की हक़ीक़त ख़त्म होजाती। हिंदूस्तान के उस वक़्त के हालात का अंदाज़ा आप के एक मकतूब से होता है जो आप ने एक मुरीद जो कि दरबार अकबरी से वाबस्ता थे हज़रत सय्यद फ़रीद बुख़ारी अलैहि अलरहमके नाम लिखा है। आप तहरीर फ़रमाते हैं कि

अह्द अकबरी में नौबत यहां तक पहुंच गई थी कि कुफ़्फ़ार ग़ालिब थे और ऐलानीयादार उल-इस्लाम में कुफ्र के अहकामात जारी करते थे और मुस्लमान अपने दीन पर अमल करने से आजिज़ थे। वो अगर ऐसा ना करते तो क़तल करदिए जाते। आँहज़रत सिल्ली अल्लाह अलैहि वसल्लम अगरचे रब अलालमीन के महबूब हैं, मगर अह्द अकबरी में आप की तसदीक़ करने वाले ज़लील-ओ-ख़ार थे और आप के मुनकिर साहिब इज़्ज़त-ओ-इफ़्तिख़ार मुस्लमान ज़ख़मी दलों के साथ इस्लाम की ज़बूँहाली पर ताज़ियत और उस की बर्बादी पर मातम कररहे थे। और इस्लाम के दुश्मन तंज़-ओ-इस्तिहज़ा से उन के ज़ख़मों पर नमक छिड़क रहे थे।

इस ख़त से अकबर की हुकूमत के दौर में इस्लाम की ज़बूँहाली का नक़्शा उभर कर सामने आजाता है। और इसी मौज़ू पर आप के मुतअद्दिद मुक्तो बात शरीफ़ हैं। ये मकतूब जहां अकबर के दौर की अक्कासी करता है तो वहीं एक तारीख़ी दस्तावेज़ की हैसियत भी रखता है। हिंदूस्तान में इस्लामी मुआशरे की बागडोर हमेशा तीन तबकों के हाथ रही है, वो अगर हिदायत पर रहे तो मुआशरे में तामीर-ओ-तरक़्क़ी और नेकी-ओ-भलाई को फ़रोग़ हासिल हुआ, वो बिगड़े तो पूरे मुआशरे में फ़साद फैल गया। वो ये इदारे ये थे।

1। दार उल-उलूम यानी मकातीब-ओ-मदारिस।

2। ख़ानक़ाही यानी रुहानी-ओ-बातिनी उलूम-ओ-मआरिफ़ के मर्कज़।

3। हुकूमत कि जिस के हाथ में मुलक की पूरी सयासी क़ुव्वत थी।

हज़रत मुजद्दिद अलफ़सानी रहमतुह अल्लाह अलैहि ने इन तीनों इदारों या तबकों की इस्लाह फ़रमाई। अल्लाह ताला ने हिंदूस्तान में इस्लामी तशख़्ख़ुस को बचाने का काम हज़रत-ए-शैख़ अहमद फ़ारूक़ी सरहिंदी की जामि कमालात शख़्सियत से लिया। आप के इस्लाही काम का सब से अहम और बुनियादी नुक्ता नबवी मुहम्मदी और उस की अबदीयत-ओ-ज़रूरत पर उम्मत मुस्लिमा में एतिक़ाद बहाल करना और उसे मज़बूत-ओ-मुस्तहकम करना था। यही आप का सब से बड़ा इन्क़िलाबी कारनामा है जो इस से क़बल किसी मुजद्दिद ने नहीं किया।

अल्लाह ताला की नुसरत-ओ-ताईद आप की शामिल हाल थी। आप नबवी मुहम्मदी अला साहबहा अलसलोवस्सलाम पर ईमान पर तजदीद की कुंजी से वो भारी भरकम क़ुफ़ुल खोल देते जो यूनानी और ईरानी फ़लसफ़े और मिस्री-ओ-हिंदूस्तानी इशराक़ीयत ने ईजाद किए थे।आप ने इस्लाह-ओ-तजदीद के लिए जो तरीक़ा-ए-कार वज़ा किए इन में सब से पहले आप ने दीनी उलूम की तरवीज-ओ-इशाअत और तालीम-ओ-तदरीस को लिया, जिस की इबतिदा आप ने अपने वालिद माजिद के मुदर्रिसा से की। देनी उलूम के तलबा-ए-ओ- शायक़ीन की ज़हन साज़ी फ़रमाई और इस के साथ ही बातिनी इस्लाह भी।

दूसरे नंबर पर आप का तरीक़ा-ए-कार्य्य था कि सोफ़याए किराम के तरीक़े पर इन्फ़िरादी राबते को मज़बूत करना। आप ने सिलसिला-ए-आलीया नक़्शबंदिया में लोगों की बैअत करके उन से फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर से तौबा कराई और आइन्दा तक़वा के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारने की तलक़ीन फ़रमाई। आप की रुहानी तवज्जा-ओ-तसर्रुफ़ से हज़ारों अफ़राद फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर से निकल कर तक़वा की शाहराह पर गामज़न होगए। और बिलख़सूस उल्मा किराम में एक इन्क़िलाब पैदा होगया और आप ने बंदगान ख़ुदा की तालीम-ओ-तर्बीयत के लिए अपने तर्बीयत याफ़ता अफ़राद को हिंदूस्तान के मुख़्तलिफ़ शहरों में भेजा।

तजदीद देन में आप के तरीक़ा-ए-कार का तीसरा पहलू आप के मुक्तो बात शरीफ़ हैं जिन्हों ने मशाल राह का काम दिया। जो शरीयत-ओ-तरीक़त के इसरार-ओ-रमूज़ के जामि हैं। उन के एक एक लफ़्ज़ से इक़ामत देन, ताज़ीम शरीयत, तरवीज संत और रद्द बिद्दत के लिए आप की तड़प और दिलसोज़ी ज़ाहिर होती है। आप की तालीमात और मजद दाना तरीका-ए-कार को जानने और समझने के लिए मुक्तो बात शरीफ़ क़ाबिल-ए-एतिमाद और मुस्तनद ज़रीया हैं।

सन 1012हिज्री में जब आप ने दावत-ओ-इस्लाह का काम शुरू क्या उस वक़्त मुग़ल बादशाह अकबर का दौर-ए-हुकूमत था जिस की बेदीनी और इस्लाम दुश्मनी इंतिहा को पहुंची हुई थी। इस के दरबारी उल्मा ने उसे दीन इलाही के नाम से इस्लाम से हिट कर मज़हब घड़ दिया था कि जो सरासर गुमराही की तरफ़ ले जाता था। दीन इलाही या दीन अकबरी की बुनियाद सरासर इस्लाम दुश्मनी पर थी, जिस के पैरोकार नबवी, वही, हश्र-ओ-नशर, जन्नत-ओ-दोज़ख़ का मज़ाक़ उड़ाते थे, क़ुरआन का ख़ुदा की तरफ़ से नाज़िल होना मशकूक गरदानते थे। ज़िंदगी बाद मौत नामुमकिन और अक़ीदा तनासुख़ को ऐन मुम्किन समझा जाने लगा। कलमा-ए-तौहीद को बदल कर मुहम्मद रसूल अल्लाह (सिल्ली अल्लाह अलैहि वसल्लम) की जगह अकबर ख़लीफ़अल्लाह तजवीज़ किया गया। इस दीन को क़बूल करने के लिए दीन इस्लाम से तौबा ज़रूरी थी। सजदा-ए-ताज़ीमी को जायज़ क़रार दिया गया। इस्लाम की ज़िद में सूद, जोह और शराबनोशी जैसे क़बीह अफ़आल हलाल क़रार पाए और ख़िंज़ीर को मुक़द्दस समझा जाने लगा।

गाय का गोश्त हराम क़रार पाया। मर्दों को दफ़नाने के बजाय जला दिया जाता या पानी में बहा दिया जाता। चचाज़ाद और मामूं ज़ाद से निकाह ममनू ठहरा। एक से ज़्यादा बीवीयां निकाह में रखना काबुल-ए-ताज़ीर जुर्म ठहरा। आतशपरस्ती और सूरज की प्रसतिश जायज़ क़रार पाई। यानी ये दीन सरासर इस्लाम और मुस्लिमीन के ख़िलाफ़ था।

हज़रत मुजद्दिद अलफ़सानी रहमतुह अल्लाह अलैहि इस बात से बख़ूबी आगाह थे कि दरबार अकबरी में बाअज़ बाअसर हज़रात देन इलाही के ख़िलाफ़ और अकबर की ग़ैर इस्लामी पालिसीयों से मुतमइन नहीं हैं। इन में बाअज़ तो हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुह अल्लाह अलैहि के हलक़ाबगोश भी थे। आप ने इन्ही अफ़राद को निज़ाम-ए-हुकूमत की इस्लाह का ज़रीया बनाया। अकबर के इंतिक़ाल के बाद जहांगीर की तख़तनशीनी के वक़्त आप ने उन अफ़राद से काम लिया। इन अफ़राद ने जहांगीर की ताजपोशी से पहले इस से अह्द लिया कि हदूद सलतनत में शराब और नशा आवर चीज़ें तैय्यार और फ़रोख़त ना की जाएं। किसी भी जुर्म में आदमी के नाक और कान ना काटे जाएं, कोई सरकारी ओहदेदार मुआवज़ा अदा किए बगै़र रियाया के किसी मकान में रिहायश इख़तियार ना करे, हर बड़े शहर में शिफ़ा ख़ाने बनाए जाएं। और उन के इलावा भी शक़ीं थीं, यानी पूरा बारह नकाती फ़ार्मूला था। हज़रत मुजद्दिद ने हुकूमत के इन दीनदार तबक़ा से राबिता बहाल रखा और मुख़्तलिफ़ मवाक़े पर ख़ुतूत इरसाल फ़रमाते रहे जो कि मुक्तो बात शरीफ़ में मौजूद हैं।

जहांगीर की तबीयत में इस्लाम से अदावत के बजाय इस से ख़ुश अकीदगी का रुजहान था। इस लिए हज़रत मुजद्दिद अलफ़सानी रहमतुह अल्लाह अलैहि के हलक़े से ताल्लुक़ रखने वाले मुहिब इस्लाम उमरा-ए-के बरवक़्त नेक और मुफ़ीद मश्वरे बड़ी हद तक कारगर साबित हुए और हुकूमत का रुख़ इस्लाम दुश्मनी से हिट गया। लेकिन आप पूरी मुस्लिम हुकूमत को इस्लाम का ख़ादिम बना देना चाहते थे। इस का मौक़ा आप को 1028हमें मिल गया। क्योंकि उस वक़्त आप शौहरत की बुलंदीयों पर थे। ख़वास-ओ-अवाम का रुजू आप की तरफ़ था। कुछ आप की शौहरत और कुछ उमरा की सरगोशियों ने जहांगीर को वहम में मुबतला कर दिया और इस ने आप को दरबार शाही में तलब करने का फ़रमान जारी कर दिया। आप दरबार शाही तशरीफ़ ले गए और मसनोना तरीक़ा पर अस्सलामु अलैकुम कहा और तशरीफ़ फ़र्मा होगए। जहांगीर को बद अंदेशों ने बहकाया कि उन्हों ने आदाब-ए-शाही अदा नहीं किए। जहांगीर ने आप को आदाब-ए-शाही के मुताबिक़ सजदा-ए-ताज़ीमी का हुक्म दिया लेकिन आप ने बबानग दहल फ़रमाया मैंने ख़ुदाए वाहिद के सिवा किसी को सजदा किया है और ना करूंगा

जहांगीर को आप की ये बात पसंद ना आई और आप को क़िला गवालयार की जेल में भेज दिया। आप ने वहां पर हज़ारों ग़ैर मुस्लिम क़ैदीयों को फ़ैज़ मुहम्मदी का जाम पिलाया जो आप की तर्बीयत और नज़र कीमियाअसर से मुस्लमान होगए। आप ने एक साल तक असीरी के अय्याम काटे। इस दौरान जहांगीर को नबी पाक सिल्ली अल्लाह अलैहि वसल्लम की ज़यारत हुई और आप ने इरशाद फ़रमाया जहांगीर तुम ने कितने बड़े शख़्स को क़ैद में डाल दिया है। इस ख़ाब से बेदारी के बाद इस ने फ़ौरन ही आप की रिहाई के अहकामात जारी करदिए और आप रहा होकर बादशाह के साथ ही रहे और बादशाह और इस के लश्करीयों की इस्लाह फ़रमाई। जहांगीर ने आप के दस्त हक़परसत पर बैअत फ़रमाई और शबाब-ओ-कबाब से तौबा की और इस तरह आप ने शआर इस्लाम को बादशाह के ज़रीया ज़िंदा कर दिया। आप ने उलूम शरईह की तरवीज-ओ-इशाअत के लिए जो दरस-ओ-तदरीस का सिलसिला क़ायम फ़रमाया था वो अबतक बर्र-ए-सग़ीर में क़ायम-ओ-दाइम है और मुहब्बत इलाही-ओ-इशक़ रसूल की चिनगारियां रोशन करने में मसरूफ़ है। आप का यही मिसाली और तारीख़ साज़ कारनामा आप को मुजद्दिद अलफ़सानी बनाने का बाइस बना। और ये लक़ब बारगाह इलाही में क़बूल हुआ। सब से पहले हज़रत मौलाना अबदुलहकीम सयालकोटी अलैहि अलरहमने आप को इस लक़ब से याद किया और फिर मुआसिर उल्मा किराम ने भी इसी से आप को याद किया। यही नहीं बल्कि मुक्तो बात शरीफ़ में आप ने ख़ुद भी अपने लिए मुजद्दिद अलफ़सानी का लक़ब तहरीर किया।

12 मुहर्रम 1034हक़ो आप ने फ़रमाया मुझे बताया गया है पैंतालीस दिन के अंदर तुम्हें इस दुनिया से दूसरी दुनिया का सफ़र किराया जाएगा और मुझे क़ब्र की जगह भी दिखाई गई है। आप शदीद बीमार थे। इसी शदीद बीमारी की हालत में उठ कर वुज़ू क्या, खड़े होकर तहज्जुद की नमाज़ पढ़ी, फिर फ़रमाया ये हमारी तहज्जुद की आख़िरी नमाज़ है। 28 सिफ़र को चाशत के वक़्त इस्तिंजा करने के लिए तश्त मंगवाया, इस में रीत ना थी, छींटों के ख़्याल से वापिस कर दिया और फ़रमाया में अपना वुज़ू तोड़ना नहीं चाहता, मुझे बिस्तर पर लुटा दो। आप को लुटा दिया गया। आप मस्नून तरीक़े के मुताबिक़ अपने दाएं रुख़सार के नीचे दायां हाथ रख कर अपने अल्लाह के ज़िक्र में मशग़ूल होगए और ज़िक्र की उसी हालत में हुस्न हक़ीक़ी के इस बाकमाल आशिक़ की रूह जसद अक़्दस से परवाज़ करके जलवा-ए-अहदीयत में वासिल हुई। बाद अज़ विसाल भी आप के चहरा-ए-मुबारक पर नूरानी मुस्कुराहट रही. सरहिंद शरीफ़ में आप का मज़ार पर अनवार है जो मरज्जा ख़लाइक़ है।